Saturday, September 18, 2010

इज्ज़त बचाने का ऐक्शन प्लान!

नीरज बधवार

व्यंग्यकार

राष्ट्रमंडल खेलों से ठीक पहले अधूरे और घटिया निर्माण की शिकायतों, बेहिसाब फर्जीवाड़ों  और आरोप-प्रत्यारोप के अंतहीन मैच के बीच आम आदमी ये सोच परेशान है कि कहीं ये खेल देश की बेइज्ज़ती का सबब न बन जाएं। जिन खेलों को हमने अपनी ताकत दिखाने के लिए आयोजित कर रहे हैं, वो हमारी मक्कारी और नक्कारेपन को ज़ाहिर न कर दें। आम आदमी के नाते मैं भी इन सब बातों से बेहद परेशान हूं। मेरा मानना है कि आपस में तो हम कभी भी लड़-मर सकते हैं मगर अभी वक़्त ये सोचने का है कि काफी हद तक लुट चुकने के बावजूद, जो बची-खुची इज्ज़त है उसे कैसे बचाया जाए। लिहाज़ा, आयोजन समिति और सरकार को मैं कुछ सुझाव देना चाहूंगा। उम्मीद है कि वो इन पर अमल करेंगे।
1. सबसे पहला काम तो सरकार ये करे कि भ्रष्टाचार से जुड़ी तमाम शिकायतों को दबा दे। आयोजकों के खिलाफ की जा रही किसी भी जांच को रोका जाए। जैसे-तैसे ये साबित किया जाए कि आयोजकों ने कहीं कोई पैसा नहीं खाया। जिस तरह एक कुशल गृहिणी दो सौ की चीज़ के लिए पति से तीन सौ रूपये लेती हैं और सौ रूपये मुसीबत के लिए बचाकर रखती है, कुछ ऐसा ही खेल आयोजकों ने भी किया है। दरअसल ये जानते थे कि राष्ट्रमंडल खेलों के सफल आयोजन के बाद हम ओलंपिक भी आयोजित करेंगे। इसी को देखते हुए इन्होंने कॉमनवेल्थ की खरीदारी में ही इतना पैसा बचा लिया है कि वो उसी से ओलंपिक का खर्च भी निकाल सकते हैं। नाम न बताने की शर्त पर एक अधिकारी ने बताया कि हम लोगों ने इतना-इतना पैसा बचा लिया है कि हर वरिष्ठ अधिकारी एक निजी कॉमनवेल्थ खेल आयोजित कर सकता है। लिहाज़ा, इन्हें भ्रष्ट साबित करने के बजाए इनकी मैनेजमेंट स्किल को दुनिया के सामने लाना चाहिए।
2. कुछ लोगों का कहना है कि खेलों के दौरान खिलाड़ियों को साफ पानी पिलाने के लिए भले ही हमने अलग से वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट लगा दिया हो, दूसरे राज्यों से अतिरिक्त बिजली खरीद ली हो, सुंदर लो-फ्लोर बसें सड़कों पर उतार दी हों मगर तब क्या होगा जब यही खिलाड़ी खेलों के दौरान अख़बारों में दूषित पानी से बच्चों के बीमार पड़ने की ख़बर पढेंगे। तब इन्हें कैसा लगेगा जब बिजली कटौती से नाराज़ लोगों को सड़कों पर तोड़फोड़ करते देखेंगे, और तमाम बेहतरीन लो-फ्लोर बसों के बावजूद, पब्लिक ट्रांसपोर्ट को लेकर वो क्या छवि बनाएंगे, जब वो पढ़ेंगे कि क्षमता से अधिक लोगों को ले जारी एक नाव नदी में डूब गई!  अगर सरकार चाहती है कि खुद को विकसित और सभ्य दिखाने की उसकी कोशिशों पर पानी न फिरें और बच्चों के दूषित पानी से बीमार पड़ने की बात इन लोगों तक न पहुंचे तो उसे खेलों के दौरान ऐसी किसी भी नकारात्मक ख़बर के प्रकाशन-प्रसारण पर रोक लगा देनी चाहिए। तभी वो पानी-पानी होने से बच पाएगी।

3. हाल-फिलहाल ये देखा गया है कि ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसी क्रिकेट टीमें जब भी भारत से कोई सीरीज़ हार कर जाती हैं तो व्यवस्था में खामिया निकालने लगती हैं। मसलन गर्मी बहुत थी, खाना अच्छा नहीं था, विकेट घटिया थे आदि-आदि। इसे देखते  सरकार को तमाम खिलाड़ियों को हिदायत देनी चाहिए कि वो किसी भी इवेंट में अच्छा प्रदर्शन करने की हिमाकत न करें। सभ्य मेज़बान का ये फर्ज़ है कि वो कुछ भी ऐसा न करें जिससे मेहमान नाराज़ हो जाएं। होगा ये कि हार का गुस्सा विदेशी खिलाड़ी यहां की व्यवस्था पर निकालने लगेंगे। अपने खिलाड़ियों का घटिया प्रदर्शन तो हम फिर भी बर्दाश्त कर लेंगे, और करते भी आएं हैं, मगर कोई हमारे इंतज़ाम को बुरा कहे, ये हमें बर्दाश्त नहीं। वैसे भी हमारे लिए स्पोर्ट्स सुपरपॉवर बनने का मतलब बड़ी प्रतियोगिताओं का आयोजन करवाना है, न कि खिलाड़ियों का परफॉर्मेंस सुधारना!

4. आख़िर में एक सलाह इमेरजंसी के लिए। आख़िरी दिनो में अगर हमें लगे कि स्टेडियम और बाकी निर्माण कार्य अब भी पूरे नहीं हुए हैं तो उस स्थिति में खेल नहीं हो पाएंगे, हुए भी तो भद्द पिटेगी... ऐसे में हमें खुद किसी खाली स्टेडियम में दो-चार सुतली बम फोड़ देने चाहिए। इसके बाद दुनिया भर में हल्ला होगा। तमाम जगह से खिलाड़ियों के नाम वापिस लेने की ख़बरें आने लगेंगी। कॉमनवेल्थ समिति सुरक्षा कारणों से भारत से मेज़बानी छीन लेगी। भारत की बजाए किसी और देश में खेल करवाए जाएंगे। वैसे भी सुरक्षा इतंज़ामों के चलते आयोजन न कर पाने की बदनामी, घटिया आयोजन कर भद्द पिटवाने से कहीं छोटी है!


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1 comment:

  1. उम्दा है। बधाई।


    प्रमोद ताम्बट
    भोपाल
    www.vyangya.blog.co.in
    http://vyangyalok.blogspot.com
    व्यंग्य और व्यंग्यलोक

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